भुवनेश्वर, 29 अगस्त 2025 (शुक्रवार) ओडिशा राज्य बार काउंसिल ने स्पष्ट निर्देश जारी किया है कि वे सभी अधिवक्ता (Advocates) जो अदालतों में सक्रिय रूप से प्रैक्टिस नहीं कर रहे हैं और किसी निजी व्यवसाय, कंपनी या सरकारी नौकरी में लगे हुए हैं, उन्हें एक माह के भीतर अपनी वकालत का लाइसेंस सरेंडर करना अनिवार्य होगा।
काउंसिल ने कहा कि Advocates Act, 1961 के अनुसार कोई वकील एक साथ दूसरे व्यवसाय या नौकरी में संलग्न होकर प्रैक्टिस नहीं कर सकता। वकील केवल “स्लीपिंग पार्टनर” के रूप में किसी कंपनी से जुड़े रह सकते हैं, बशर्ते कि वह उनकी पेशेवर गरिमा के विपरीत न हो। लेकिन किसी कंपनी के सचिव या प्रबंध निदेशक (MD) के रूप में कार्य करना पूर्णतः निषिद्ध है।
यदि कोई अधिवक्ता पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी बनता है, तो उसे तत्काल बार काउंसिल को सूचित करना होगा और उस अवधि में वकालत करने का अधिकार स्वतः निलंबित हो जाएगा।
काउंसिल ने चेतावनी दी है कि निर्धारित समय सीमा के भीतर लाइसेंस सरेंडर न करने पर जिला बार एसोसिएशनों को अधिकार होगा कि वे ऐसे अधिवक्ताओं पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करें और आवश्यकता पड़ने पर आपराधिक कार्यवाही भी शुरू की जा सकती है।
लेखक की राय
यह निर्णय वकालत पेशे की साख और नैतिक मूल्यों को मजबूत करने की दिशा में एक सख्त लेकिन उचित कदम है। यदि वकील अदालतों में सक्रिय नहीं हैं और साथ ही किसी अन्य नौकरी या व्यवसाय में लगे हुए हैं, तो उनके पास लाइसेंस बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। यह केवल पेशे की गरिमा को आघात पहुँचाता है और बार काउंसिल की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाता है। एक माह की समय सीमा यह सुनिश्चित करेगी कि व्यवस्था जल्द से जल्द साफ-सुथरी बने और केवल वास्तविक वकील ही बार काउंसिल का हिस्सा रहें।